अष्टलक्ष्मी का अर्थ है, लक्ष्मी के आठ विशेष रूप।
लक्ष्मी के आठ रूप ये हैं- आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, सन्तानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी।
लक्ष्मी (/ˈlʌkʃmi/; संस्कृत: लक्ष्मी, IAST: lakṣmī) हिन्दू धर्म की एक प्रमुख देवी हैं। वह भगवान विष्णु की पत्नी हैं। पार्वती और सरस्वती के साथ, वह त्रिदेवियाँ में से एक है और धन, सम्पदा, शान्ति और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं। दीपावली के त्योहार में उनकी गणेश सहित पूजा की जाती है। जिनका उल्लेख सबसे पहले ऋग्वेद के श्री सूक्त में मिलता है।
गायत्री की कृपा से मिलने वाले वरदानों में एक लक्ष्मी भी है। जिस पर यह अनुग्रह उतरता है, वह दरिद्र, दुर्बल, कृपण, असंतुष्ट एवं पिछड़ेपन से ग्रसित नहीं रहता। स्वच्छता एवं सुव्यवस्था के स्वभाव को भी ‘श्री’ कहा गया है। यह सद्गुण जहाँ होंगे, वहाँ दरिद्रता, कुरुपता टिक नहीं सकेगी।
पदार्थ को मनुष्य के लिए उपयोगी बनाने और उसकी अभीष्ट मात्रा उपलब्ध करने की क्षमता को लक्ष्मी कहते हैं। यों प्रचलन में तो ‘लक्ष्मी’ शब्द सम्पत्ति के लिए प्रयुक्त होता है, पर वस्तुतः वह चेतना का एक गुण है, जिसके आधार पर निरुपयोगी वस्तुओं को भी उपयोगी बनाया जा सकता है। मात्रा में स्वल्प होते हुए भी उनका भरपूर लाभ सत्प्रयोजनों के लिए उठा लेना एक विशिष्ट कला है। वह जिसे आती है उसे लक्ष्मीवान्, श्रीमान् कहते हैं। शेष अमीर लोगों को धनवान् भर कहा जाता है। गायत्री की एक किरण लक्ष्मी भी है। जो इसे प्राप्त करता है, उसे स्वल्प साधनों में भी अथर् उपयोग की कला आने के कारण सदा सुसम्पन्नों जैसी प्रसन्नता बनी रहती है।
श्री, लक्ष्मी के लिए एक सम्मानजनक शब्द, पृथ्वी की मातृभूमि के रूप में सांसारिक क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है, जिसे पृथ्वी माता के रूप में संदर्भित किया जाता है, और उसे भु देवीऔर श्री देवी के अवतार मानी जाती हैं।
जैन धर्म में भी लक्ष्मी एक महत्वपूर्ण देवता हैं और जैन मंदिरों में पाए जाते हैं। लक्ष्मी भी बौद्धों के लिए प्रचुरता और भाग्य की देवी रही हैं, और उन्हें बौद्ध धर्म के सबसे पुराने जीवित स्तूपों और गुफा मंदिरों का प्रतिनिधित्व किया गया था।
अर्थ
धन का अधिक मात्रा में संग्रह होने मात्र से किसी को सौभाग्यशाली नहीं कहा जा सकता। सद्बुद्धि के अभाव में वह नशे का काम करती है, जो मनुष्य को अहंकारी, उद्धत, विलासी और दुर्व्यसनी बना देता है। सामान्यतः धन पाकर लोग कृपण, विलासी, अपव्ययी और अहंकारी हो जाते हैं। लक्ष्मी का एक वाहन उलूक माना गया है। उलूक अथार्त् मूखर्ता। कुसंस्कारी व्यक्तियों को अनावश्यक सम्पत्ति मूर्ख ही बनाती है। उनसे दुरुपयोग ही बन पड़ता है और उसके फल स्वरूप वह आहत ही होता है।
स्वरूप
माता महालक्ष्मी के अनेक रूप है जिस में से उनके आठ स्वरूप जिन को अष्टलक्ष्मी कहते है प्रसिद्ध है
लक्ष्मी का अभिषेक दो हाथी करते हैं। वह कमल के आसन पर विराजमान है।
कमल कोमलता का प्रतीक है। लक्ष्मी के एक मुख, चार हाथ हैं। वे एक लक्ष्य और चार प्रकृतियों (दूरदर्शिता, दृढ़ संकल्प, श्रमशीलता एवं व्यवस्था शक्ति) के प्रतीक हैं। दो हाथों में कमल-सौन्दयर् और प्रामाणिकता के प्रतीक है। दान मुद्रा से उदारता तथा आशीर्वाद मुद्रा से अभय अनुग्रह का बोध होता है। वाहन-उलूक, निर्भीकता एवं रात्रि में अँधेरे में भी देखने की क्षमता का प्रतीक है।
कोमलता और सुंदरता सुव्यवस्था में ही सन्निहित रहती है। कला भी इसी सत्प्रवृत्ति को कहते हैं। लक्ष्मी का एक नाम कमल भी है। इसी को संक्षेप में कला कहते हैं। वस्तुओं को, सम्पदाओं को सुनियोजित रीति से सद्दुश्य के लिए सदुपयोग करना, उसे परिश्रम एवं मनोयोग के साथ नीति और न्याय की मयार्दा में रहकर उपार्जित करना भी अथर्कला के अंतगर्त आता है। उपार्जन अभिवधर्न में कुशल होना श्री तत्त्व के अनुग्रह का पूवार्ध है। उत्तरार्ध वह है जिसमें एक पाई का भी अपव्यय नहीं किया जाता। एक-एक पैसे को सदुद्देश्य के लिए ही खर्च किया जाता है।
लक्ष्मी का जल-अभिषेक करने वाले दो गजराजों को परिश्रम और मनोयोग कहते हैं। उनका लक्ष्मी के साथ अविच्छिन्न संबंध है। यह युग्म जहाँ भी रहेगा, वहाँ वैभव की, श्रेय-सहयोग की कमी रहेगी ही नहीं। प्रतिभा के धनी पर सम्पन्नता और सफलता की वर्षा होती है और उन्हें उत्कर्ष के अवसर पग-पग पर उपलब्ध होते हैं।
गायत्री के तत्त्वदशर्न एवं साधन क्रम की एक धारा लक्ष्मी है। इसका शिक्षण यह है कि अपने में उस कुशलता की, क्षमता की अभिवृद्धि की जाये, तो कहीं भी रहो, लक्ष्मी के अनुग्रह और अनुदान की कमी नहीं रहेगी। उसके अतिरिक्त गायत्री उपासना की एक धारा ‘श्री’ साधना है। उसके विधान अपनाने पर चेतना-केन्द्र में प्रसुप्त पड़ी हुई वे क्षमताएँ जागृत होती हैं, जिनके चुम्बकत्व से खिंचता हुआ धन-वैभव उपयुक्त मात्रा में सहज ही एकत्रित होता रहता है। एकत्रित होने पर बुद्धि की देवी सरस्वती उसे संचित नहीं रहने देती, वरन् परमाथर् प्रयोजनों में उसके सदुपयोग की प्रेरणा देती है।
फलदायक
लक्ष्मी प्रसन्नता की, उल्लास की, विनोद की देवी है। वह जहाँ रहेगी हँसने-हँसाने का वातावरण बना रहेगा। अस्वच्छता भी दरिद्रता है। सौन्दर्य, स्वच्छता एवं कलात्मक सज्जा का ही दूसरा नाम है। लक्ष्मी सौन्दर्य की देवी है। वह जहाँ रहेगी वहाँ स्वच्छता, प्रसन्नता, सुव्यवस्था, श्रमनिष्ठा एवं मितव्ययिता का वातावरण बना रहेगा।
गायत्री की लक्ष्मी धारा का आववाहन करने वाले श्रीवान बनते हैं और उसका आनंद एकाकी न लेकर असंख्यों को लाभान्वित करते हैं। लक्ष्मी के स्वरूप, वाहन आदि का संक्षेप में विवेचन इस प्रकार है-
श्री अष्टलक्ष्मी स्त्रोतम:
आदि लक्ष्मी:
सुमनस वन्दित सुन्दरि माधवि चंद्र सहोदरि हेममये ।
मुनिगण वन्दित मोक्षप्रदायिनी मंजुल भाषिणि वेदनुते ।
पङ्कजवासिनि देवसुपूजित सद-गुण वर्षिणि शान्तिनुते ।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि आदिलक्ष्मि परिपालय माम् ।
धान्य लक्ष्मी:
अयिकलि कल्मष नाशिनि कामिनि वैदिक रूपिणि वेदमये ।
क्षीर समुद्भव मङ्गल रुपिणि मन्त्रनिवासिनि मन्त्रनुते ।
मङ्गलदायिनि अम्बुजवासिनि देवगणाश्रित पादयुते ।
जय जय हे मधुसूदनकामिनि धान्यलक्ष्मि परिपालय माम् ।
धैर्य लक्ष्मी:
जयवरवर्षिणि वैष्णवि भार्गवि मन्त्र स्वरुपिणि मन्त्रमये ।
सुरगण पूजित शीघ्र फलप्रद ज्ञान विकासिनि शास्त्रनुते ।
भवभयहारिणि पापविमोचनि साधु जनाश्रित पादयुते ।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि धैर्यलक्ष्मि सदापालय माम् ।
गज लक्ष्मी:
जय जय दुर्गति नाशिनि कामिनि वैदिक रूपिणि वेदमये ।
रधगज तुरगपदाति समावृत परिजन मंडित लोकनुते ।
हरिहर ब्रम्ह सुपूजित सेवित ताप निवारिणि पादयुते ।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि गजलक्ष्मि रूपेण पालय माम् ।
सन्तान लक्ष्मी:
अयि खगवाहिनी मोहिनि चक्रिणि रागविवर्धिनि ज्ञानमये ।
गुणगणवारिधि लोकहितैषिणि सप्तस्वर भूषित गाननुते ।
सकल सुरासुर देव मुनीश्वर मानव वन्दित पादयुते ।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि सन्तानलक्ष्मि परिपालय माम् ।
विजय लक्ष्मी:
जय कमलासनि सद-गति दायिनि ज्ञानविकासिनि गानमये ।
अनुदिन मर्चित कुङ्कुम धूसर भूषित वसित वाद्यनुते ।
कनकधरास्तुति वैभव वन्दित शङ्करदेशिक मान्यपदे ।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि विजयक्ष्मि परिपालय माम् ।
विद्या लक्ष्मी:
प्रणत सुरेश्वरि भारति भार्गवि शोकविनाशिनि रत्नमये ।
मणिमय भूषित कर्णविभूषण शान्ति समावृत हास्यमुखे ।
नवनिद्धिदायिनी कलिमलहारिणि कामित फलप्रद हस्तयुते ।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि विद्यालक्ष्मि सदा पालय माम् ।
धन लक्ष्मी:
धिमिधिमि धिन्धिमि धिन्धिमि-दिन्धिमी दुन्धुभि नाद सुपूर्णमये ।
घुमघुम घुङ्घुम घुङ्घुम घुङ्घुम शङ्ख निनाद सुवाद्यनुते ।
वेद पुराणेतिहास सुपूजित वैदिक मार्ग प्रदर्शयुते ।
जय जय हे कामिनि धनलक्ष्मी रूपेण पालय माम् ।
अष्टलक्ष्मी नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि ।
विष्णुवक्षःस्थलारूढे भक्तमोक्षप्रदायिनी ।।
शङ्ख चक्र गदाहस्ते विश्वरूपिणिते जयः ।
जगन्मात्रे च मोहिन्यै मङ्गलम शुभ मङ्गलम ।
। इति श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम सम्पूर्णम ।
माता लक्ष्मी की पूजा (जिनको धन की देवी के नाम से जाना जाता है) को बहुत आदर-सम्मान से दिवाली के पर्व पर पूरे भारत-वर्ष में पूजा जाता है। नारायण लक्ष्य है और लक्ष्मी जी उन तक पहुँचने का एक साधन। गुरुदेव श्री श्री रवि शंकरजी ने इन आठ प्रकार के धन या अष्ट लक्ष्मी के बारे में विस्तार से वर्णन किया है। यहां अष्ट लक्ष्मी पर मूल हिंदी वार्तालाप के अंश हैं:
1. आदि लक्ष्मी
2. धन लक्ष्मी
3. विद्या लक्ष्मी
4. धान्य लक्ष्मी
5. धैर्य लक्ष्मी
6. संतान लक्ष्मी
7. विजय लक्ष्मी
8. राज लक्ष्मी
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आदि लक्ष्मी| Adi Lakshmi
आपने कभी सोचा है कि आप इस दुनिया में कैसे आए हैं ? आपकी उम्र क्या है? 30,40,50 साल? ये 50 साल पहले मैं कहां था? मेरा स्रोत कहां हैं? मेरा मूल क्या हैं? मैं कौन हूँ? -35-40-50 वर्षों के बाद, यह शरीर नहीं रहेगा! मैं कहाँ जाऊँगा? मैं कहाँ से आया हूं? क्या मैं यहाँ आया हूं या हर समय यहां हूं? हमारे मूल का ज्ञान, स्रोत का यह ज्ञान हो जाना ही आदि लक्ष्मी है।तब नारायण बहुत पास ही है। जिस व्यक्ति को स्रोत का ज्ञान हो जाता है, वह सभी भय से मुक्त हो जाता है और संतोष और आनंद प्राप्त करता है। ये आदि लक्ष्मी है। आदि लक्ष्मी केवल ज्ञानीओं के पास होती है और जिनके पास आदिलक्ष्मी हुई समझ लो उनको भी ज्ञान हो गया।
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धन लक्ष्मी | Dhana Lakshmi
हर कोई धन लक्ष्मी के बारे में जानते ही है। धन की चाह से और अभाव से ही आदमी अधर्म करता है। धन की चाह के कारण कई लोग हिंसा, चोरी, धोखाधड़ी जैसे गलत काम करते हैं मगर जाग के नहीं देखते की मेरे पास है। जोर जबरदस्ती के साथ धन लक्ष्मी आती नहीं है अगर आती भी है तो वो आनंद नहीं देती सिर्फ दुःख ही दुःख देती है। कुछ लोग केवल धन को ही लक्ष्मी मान लेते हैं और धन एकत्रित करना अपना लक्ष्य बना लेते हैं। मरते दम तक पैसा इकट्ठा करो और बैंक में पैसा रखकर मर जाओ। धन को लक्ष्य बनाने वाले दुःखी रह जाते है। कुछ लोग होते है जो धन को दोषी ठहराते है। पैसा नहीं है ये ठीक हैं, पैसा अच्छा नहीं है, पैसे से ये खराब हुआ, ये सभी गलतफहमी है। धन का सम्मान करो, सदुपयोग करो तब धन लक्ष्मी ठहरती हैं। लक्ष्मी की तरह उसकी पूजा करो। कहते है लक्ष्मी बड़ी चंचल होती है यानी वो चलती रहती है। चली तो उसका मूल्य हुआ चलती नहीं है बंद रहती है तो फिर उसका कोई महत्व नहीं है। इसलिए धन का सदुपयोग करो,सम्मान करो।
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विद्या लक्ष्मी | Vidya Lakshmi
यदि आप लक्ष्मी और सरस्वती के चित्र देखते हैं तो आप देखेंगे कि लक्ष्मी को ज्यादातर कमल में पानी के उपर रखा है। पानी अस्थिर है यानी लक्ष्मी भी पानी की तरह चंचल है। विद्या की देवी सरस्वती को एक पत्थर पर स्थिर स्थान पर रखा है। विद्या जब आती है तो जीवन में स्थिरता आती है। विद्या का भी हम दुरुपयोग कर सकते हैं और सिर्फ पढ़ना ही किसीका लक्ष्य हो जाए तब भी वह विद्या लक्ष्मी नहीं बनती। पढ़ना है, फिर जो पढ़ा है उसका उपयोग करना है तब वह विद्या लक्ष्मी है।
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धान्य लक्ष्मी | Dhanya Lakshmi
धन लक्ष्मी हो सकती है मगर धान्य लक्ष्मी भी हो यह ज़रूरी नहीं। धन तो है मगर कुछ खा नहीं सकते- रोटी, घी, चावल, नमक, चीनी खा नहीं सकते। इसका मतलब धन लक्ष्मी तो है मगर धान्य लक्ष्मी का अभाव है। गांवों में आप देखें खूब धान्य होता है। वे किसी को भी दो-चार दिन तक खाना खिलाने में संकोच नहीं करते। धन भले ही ना हो पर धान्य होता है। गाँवों में लोग खूब अच्छे से खाते भी है और खिलाते भी है। शहर के लोगों की तुलना में ग्रामीणों द्वारा खाया जाने वाला भोजन गुणवत्ता और मात्रा में श्रेष्ठ है। उनकी पाचन शक्ति भी अच्छी होती है। धान्य का सम्मान करें ये है धान्य लक्ष्मी। दुनिया में भोजन हर व्यक्ति के लिए आव्यशक है। भोजन को बर्बाद नहीं करना या खराब नहीं करना। कई बार भोजन जितना बनता है उसमें आधे से ज्यादा फेंक देते हैं औरों को भी नहीं देते। ये नहीं करना। भोजन का सम्मान करना ही धान्य लक्ष्मी है।
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धैर्य लक्ष्मी | Dhairya Lakshmi
घर में सब है, धन है, धान्य है, सब संपन्न है मगर डरपोक है। अक्सर अमीर परिवार के बच्चे बड़े डरपोक होते है। हिम्मत यानी धैर्य एक संपत्ति है। नौकरी में हमेशा ये पाया जाएगा लोग अपने अधिकारियों से डरते है। बिजनेस मेन हो तो इंस्पेक्टरों से डरते रहते है। हम अक्सर अधिकारियों से पूछते हैं कि आप किस प्रकार के सहायक को पसंद करते हैं? – जो आपके सामने डरता है या जो धैर्य से आपके साथ संपर्क करता हैं? जो आपसे डरता है वह आपको कभी सच नहीं बताएगा, झूठी कहानी बता देगा। ऐसे व्यक्ति के साथ आप काम कर ही नहीं पाओगे। आप वहीं सहायक पसंद करते हो जो धैर्य से रहे और ईमानदारी से आपसे बात करे। मगर आप क्यों डरते हो आपके अधिकारियों से? क्यों? क्योंकि हम अपने जीवन से जुड़े नहीं है। हमको ये नहीं पता है की हमारे भीतर ऐसी शक्ति है एक दिव्यशक्ति है जो हमारे साथ हमेशा के लिए है। यह धैर्य लक्ष्मी की कमी हो गई। धैर्य लक्ष्मी होने से ही जीवन में प्रगति हो सकती है नहीं तो नहीं हो सकती। जिस मात्रा में धैर्य लक्ष्मी होती है उस मात्रा में प्रगति होती है। चाहे बिजनेस में हो चाहे नौकरी में हो। धैर्य लक्ष्मी की आवश्यकता होती ही है।
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संतान लक्ष्मी | Santana Lakshmi
ऐसे बच्चे हो जो प्यार की पुंजी हो, प्यार का संबंध हो, भाव हो, तब वो संतान लक्ष्मी हुई। जिस संतान से तनाव कम होता है या नहीं होता है वह संतान लक्ष्मी।। जिस संतान से सुख, समृद्धि, शांति होती है वह है संतान लक्ष्मी। और। जिस संतान से झगड़ा, तनाव, परेशानी, दुःख, दर्द, पीड़ा हुआ वह संतान संतान लक्ष्मी नहीं होती।
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विजय लक्ष्मी | Vijaya Lakshmi
कुछ लोगों के पास सब साधन, सुविधाएँ होती है फिर भी किसी भी काम में उनको सफलता नहीं मिलती। सब-कुछ होने के बाद भी किसी भी काम में वो हाथ लगाये वो चौपट हो जाता है, काम होगा ही नहीं, ये विजय लक्ष्मी की कमी है। आप किसी को बाजार में कुछ लेने भेजोगे तो बस उसे नहीं मिलती। रिक्शा करेंगे तो बिगड़ जाएगी। टैक्सी से अगर बाजार पहुँच भी गए तो दुकानें सब बंद मिलती है। आपको लगेगा इससे अच्छा होता में खुद ही जाकर यह काम कर लेता। छोटे से छोटा काम भी नहीं कर पाते है उनमें विजय लक्ष्मी की बहुत भारी कमी है। कुछ न कुछ बहाना बताएँगे या बहाना ना भी हो परिस्थितियाँ ऐसी हो जाएगी उनके सामने। कुछ भी काम में सफलता नहीं मिलती यह विजय लक्ष्मी की कमी है।
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राज लक्ष्मी | Raj Lakshmi
राज लक्ष्मी कहे चाहे भाग्य लक्ष्मी कहे दोनों एक ही है – सत्ता। कई बार कोई मंत्री उच्चतम पद पर कब्जा करके बैठता है तब कुछ भी बोलता है पर कोई सुननेवाला नहीं होता। उनका हुकूमत कोई नहीं सुनता। ऐसा कार्यालय में भी कई बार होता है। मालिक की बात कोई नहीं सुनता मगर एक क्लर्क की बात सब सुनते है वो अपना हुकूमत चलाएगा। एक ट्रेड यूनियन के प्रमुख के पास जितना राज लक्ष्मी है शायद ही किसी शहरी मिल -मालिक के पास होता है। मिल का तो वो सिर्फ ट्रेड यूनियन प्रमुख है मगर उनके पास राज लक्ष्मी है वो हुकूमत चला सकता है। शासन करने की शक्ति यह है राज लक्ष्मी।
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ये आठ प्रकार के धन सभी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं प्रत्येक व्यक्ति में इन आठ धन अधिक या कम मात्रा में होते हैं। हम उन्हें कितना सम्मान करते हैं, उनका उपयोग करते हैं, हमारे ऊपर निर्भर है। इन आठ लक्ष्मी की अनुपस्थिति को- अष्ट दरीद्रता कहा जाता है। चाहे लक्ष्मी है या नहीं, नारायण को अभी भी अनुकूलित किया जा सकता है। नारायण दोनों के हैं – लक्ष्मी नारायण और दरिद्र नारायण!
दरिद्र नारायण परोसा जाता है और लक्ष्मी नारायण की पूजा की जाती है। पूरे जीवन का प्रवाह दरिद्र नारायण से लक्ष्मी नारायण तक – दुख से समृद्धि तक, जीवन में सूखेपन से दैवीय अमृत तक जा रहा है।
धन और यश पाने के लिए ऐसे करें लक्ष्मीजी की पूजा…
मां लक्ष्मी अपने भक्तों की धन से जुड़ी हर तरह की समस्याएं दूर करती हैं. इतना ही नहीं, देवी साधकों को यश और कीर्ति भी देती हैं.
आइए सबसे पहले जान लेते हैं कि कौन हैं मां लक्ष्मी और इनकी महिमा क्या है.
मां लक्ष्मी की महिमा
— धन और संपत्ति की देवी हैं मां लक्ष्मी.
— इनकी पूजा से धन की प्राप्ति होती है, साथ ही वैभव भी मिलता है.
— अगर लक्ष्मी रुष्ट हो जाएं, तो घोर दरिद्रता का सामना करना पड़ता है.
— ज्योतिष में शुक्र ग्रह से इनका सम्बन्ध जोड़ा जाता है.
— इनकी पूजा से केवल धन ही नहीं, बल्कि नाम, यश भी मिलता है.
— इनकी उपासना से दाम्पत्य जीवन भी बेहतर होता है.
— कितनी भी धन की समस्या हो, अगर विधिवत लक्ष्मीजी की पूजा की जाए, तो धन मिलता ही है.
मां लक्ष्मी की पूजा के कुछ नियम है. अगर इन नियमों का पालन न किया जाए, तो मां नाराज भी हो जाती हैं.
लक्ष्मी की पूजा के नियम और सावधानियां…
— मां लक्ष्मी की पूजा सफेद या गुलाबी वस्त्र पहनकर करनी चाहिए.
— इनकी पूजा का उत्तम समय होता है- मध्य रात्रि.
— मां लक्ष्मी के उस प्रतिकृति की पूजा करनी चाहिए, जिसमें वह गुलाबी कमल के पुष्प पर बैठी हों.
— साथ ही उनके हाथों से धन बरस रहा हो.
— मां लक्ष्मी को गुलाबी पुष्प, विशेषकर कमल चढ़ाना सर्वोत्तम रहता है.
— मां लक्ष्मी के मन्त्रों का जाप स्फटिक की माला से करने पर वह तुरंत प्रभावशाली होता है.
— मां लक्ष्मी के विशेष स्वरूप हैं, जिनकी उपासना शुक्रवार के दिन करने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है.
अब आपको बताते हैं कि धन से जुड़ी अलग-अलग समस्याओं के लिए क्या-क्या उपाय करने चाहिए.
नियमित धन प्राप्ति के लिए: धन लक्ष्मी की पूजा
— मां लक्ष्मी के उस स्वरूप की स्थापना करें, जिसमें उनके हाथों से धन गिर रहा हो.
— चित्र के समक्ष घी का एक बड़ा सा दीपक जलाएं.
— इसके बाद उनको इत्र समर्पित करें.
— वही इत्र नियमित रूप से प्रयोग करें.
— वृष, कन्या और मकर राशि वालों के लिए धन लक्ष्मी की पूजा विशेष लाभकारी होती है.
धन की बचत के लिए: धान्य लक्ष्मी की पूजा
— मां लक्ष्मी के उस स्वरूप की स्थापना करें, जिसमें उनके पास अनाज की ढेरी हो.
—या चावल की ढेरी पर लक्ष्मीजी का स्वरूप स्थापित करें.
— उनके सामने घी का दीपक जलाएं, उनको चांदी का सिक्का अर्पित करें.
— पूजा के उपरान्त उसी चांदी के सिक्के को अपने धन स्थान पर रख दें.
— मिथुन, तुला और कुम्भ राशि वालों के लिए धान्य लक्ष्मी के स्वरूप की आराधना विशेष होती है.
कारोबार में धन की प्राप्ति के लिए: गज लक्ष्मी की पूजा
— लक्ष्मीजी के उस स्वरूप की स्थापना करें, जिसमें दोनों तरफ उनके साथ हाथी हों.
— लक्ष्मीजी के समक्ष घी के तीन दीपक जलाएं.
— मां लक्ष्मी को एक गुलाब का फूल अर्पित करें.
— पूजा के उपरान्त उसी गुलाब को अपने धन वाली जगह पर रख दें. रोज इस गुलाब को बदल दें.
— वृष, कन्या, धनु, मकर और मीन राशि के कारोबारी लोगों के लिए गजलक्ष्मी की पूजा विशेष होती है.
नौकरी में धन की बढ़ोतरी के लिए: ऐश्वर्य लक्ष्मी की पूजा
— गणेशजी के साथ लक्ष्मीजी की स्थापना करें.
— गणेशजी को पीले और लक्ष्मीजी को गुलाबी फूल चढ़ाएं.
— लक्ष्मीजी को अष्टगंध चरणों में अर्पित करें.
— नित्य प्रातः स्नान के बाद उसी अष्टगंध का तिलक लगाएं.
— कर्क, वृश्चिक और मीन राशि के लिए ऐश्वर्य लक्ष्मी की पूजा विशेष होती है.
धन के नुकसान से बचने के लिए: वर लक्ष्मी की पूजा
— उनके चरणों में नित्य प्रातः एक रुपये का सिक्का अर्पित करें.
— सिक्कों को जमा करते जाएं और महीने के अंत में किसी सौभाग्यवती स्त्री को दे दें.
— मेष, सिंह और धनु राशि के लोगों के लिए वरलक्ष्मी के स्वरूप की उपासना अदभुत होती है.
अगर आप भी धन से जुड़ी किसी दिक्कत से जूझ रहे हैं, तो लीजिए मां का नाम और देखिए कैसे हो जाएगा आपका कल्याण.
फाइनेंसियल स्वतंत्रता को प्रेरित करने के लिए 20 मनी मंत्र
फाइनेंसियल मुश्किल, मनोहर हो सकता है , और पूरी तरह से निराशा हो सकती है। यही कारण है कि हमने आपके लिए यहां कुछ पसंदीदा “धन मंत्र” राउंड किए हैं। इन पैसों की पुष्टि (एफर्मेशन) जोर से, या आपके दिमाग में भी, आपकी वित्तीय स्थिति के आसपास शांत और सकारात्मकता पैदा करने में मदद कर सकती है।
हम आशा करते हैं कि निम्नलिखित पुष्टिएँ (एफर्मेशन) आपको पैसे के आसपास एक नकारात्मक मानसिकता को रीसेट करने में मदद करेंगी। और इससे भी अधिक, हम आशा करते हैं कि ये धन पुष्टि (एफर्मेशन) आपको उस बचत खाते को खोलने , सेवानिवृत्ति के लिए योजना , अपने छात्र ऋण का भुगतान करने , या निवेश करने के लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए सशक्त बनाएगी ।
सब से पहले आपको अपने आप को आमिर समजना जरुरी है और दूसरा मनी पाने के लिए आपके मनमे सब से पहले देनेकी मानसिकता होनी जरुरी है मनी एक एनर्जी है और अगर जरुरत से ज्यादा आपके पास जमा हो गयी तो नुकसान कर सकती है इस लिए उसको प्रवाहित रखना बहुत ही जरुरी है
कुदरत का नियम है आपो और पाओ… सबसे पहले आपके पास जो मनी एनर्जी है उसको नोट करे सभी जगह की उसमे आपके घर और दुकान की कीमत भी गिननी है
अब आपको मनी एनर्जी जहा जहा से आती है उसको नोट करना है और वो कितनी आती है वो लिखना है
अब आपको मनी एनर्जी जिनको जिनको देनी है या देते हो उसकी लिस्ट और नोट बनानी है वर्तमान की नोट ही बनानी है जिसमे भूतकाल आ गया है
अब आपको पहले आपके पास जो एनर्जी है उसमे से आप कितनी दे सकते हो वो देना शुरू करना है और देते वक्त हर बार आपको ३ बार ७०८ बोलना है
अब आपके पास आणि वाली मनी एनर्जी को भी ३ बार मनमे ७०८ बोलके लेना है और उसमे से हो सके तो रोज भगवान का भाग निकल देना है अगर आप रोज अपनी अवाक् के हिसाब से पहले से ही ये भाग रख देते हो तो दिन भर भगवान की उर्जा आपको सही करेगी आप ये प्रयोग ७ दिन करके देखे
अब आप को रोज ३ बार ये सारे मनि मंत्र पढ़ने है और उसके हिसाब से जीवन जीना है
यहाँ 20 सकारात्मक धन मंत्र और पुष्टि के लिए आप शुरू कर रहे हैं:
- में एक पैसा चुंबक हु।
- मेरे लिए पैसा स्वतंत्र रूप से बहता है।
- मैं पैसे को आकर्षित करने के लिए सभी प्रतिरोध जारी करता हूं। मैं एक सकारात्मक नकदी प्रवाह के योग्य हूं।
- मेरे जीवन में हमेशा पर्याप्त से अधिक पैसा है।
- मैं स्वाभाविक रूप से सौभाग्य को आकर्षित करता हूं।
- मैं आर्थिक रूप से स्वतंत्र हूं।
- मेरी आय मेरे खर्चों से अधिक है।
- मैं अपने कौशल, समय और ज्ञान के लिए भुगतान करने के लायक हूं।
- मेरे पास पैसे के लिए एक सकारात्मक संबंध है और इसे बुद्धिमानी से खर्च करना जानता है।
- मेरी आय लगातार बढ़ती है।
- मैं एक से अधिक तरीकों से धनी हूं।
- मेरी नौकरी / व्यवसाय मुझे उस जीवन को जीने की अनुमति देता है जो मैं चाहता हूं।
- मैं पैसे की सार्वभौमिक आपूर्ति से जुड़ा हुआ हूं।
- मेरे पास जो प्रचुरता है और इसके रास्ते में प्रचुरता है, उसके लिए मैं आभारी हूं।
- प्रत्येक डॉलर जो मैं खर्च करता हूं और दान करता हूं वह मेरे पास कई गुना आता है।
- मैं अपने वित्त को बिना किसी डर के देख सकता हूं।
- मैं एक समृद्ध और पूर्ण जीवन जीना चुनता हूं।
- मैं खुद को समृद्ध और विकसित होने की अनुमति देता हूं।
- मैं अपनी इच्छा के अनुसार सभी समृद्धि के योग्य हूं।
- मेरे पास सफलता पाने और मेरी इच्छा के अनुसार धन बनाने की शक्ति है।