वक्तुं गुणान् गुण- समुद्र! शशाङ्क- कान्तान्
कस्ते क्षमः सुरगुरु- प्रतिमोऽपि बुद्ध्या
कल्पान्त- काल- पवनोद्धत- नक्र- चक्रं
को वा तरीतु- मलमम्बुनिधिं भुजाभ्याम् ।।🧘🏼♀️
🔆वक्तुं कहने के लिए
🔆 गुणान् गुणों को हे
🔆गुण- समुद्र! ये भगवान का संबोधन हे गुणों के सागर!, हे गुणों के सागर आपके गुणों को कहने के लिए, आपके गुण कैसे हैं?
🔆 शशाङ्क-कान्तान्
🔆 शशाङ्क माने चंद्रमा, चंद्रमा जैसी कांति वाले अर्थात स्वच्छ/पवित्र। शशाङ्क-कान्तान् चंद्रमा जैसी कांति वाले
🔆 गुणान् गुणों को, किसके गुणों को? ते माने आपके, आपके चंद्रमा जैसी कांति वाले गुणों को कहने के लिए हे गुणों के सागर भगवन्!
सुरगुरु प्रतिम अपि
🔆 सुरगुरु माने बृहस्पति के प्रतिम: अपि माने सदृश भी, बृहस्पति कहते हैं देवताओं के गुरु तो बुद्धि में कैसा हो? बुद्धि में चाहे देवताओं के गुरु जैसा (बृहस्पति जैसा हो) तो भी
🔆 बुद्ध्या बुद्धि से सुरगुरु प्रतिम:
🔆 अपि सुरगुरु के समान भी
🔆 क: क्षम: कैसे समर्थ हो सकता है अर्थात समर्थ नहीं हो सकता।
🔆फिर देखें, हे गुण- समुद्र! हे गुणों के सागर! ते माने आपके शशाङ्क-कान्तान् चंद्रमा जैसी कांति वाले धवल पवित्र ऐसे गुणान् गुणों को कहने के लिए बुद्धि से सुरगुरु के समान भी क: क्षम: कैसे समर्थ हो सकता है अर्थात समर्थ नहीं हो सकता। भगवन् आपके गुण कितने हैं? अनंत। अनंत गुणों को कहने की सामर्थ किसमे है? किसी में नहीं, बृहस्पति हो, मैं तो कहता हूं गणधर देव स्वयं भी अगर आए तो भी आपके अनंत गुणों का कथन नहीं कर सकते।
🔆आगे उदाहरण दे रहे हैं। आचार्य मानतुङ्ग स्वामी ने इन काव्यों में एक बात बड़ी सुंदर की है। जैसे आपने तीसरे काव्य मे देखा ना पहले उन्होंने बताया बुद्धि के बिना भी बाद में उन्होंने उदाहरण दिया जैसे पानी में चंद्रमा का बिम्ब चमक रहा हो तो नासमझ बालक ही तो पकड़ने की कोशिश करता है। इसी तरह यहां भी उदाहरण दे रहे हैं।
क्या कह रहे हैं?
🔆 कल्पान्त- काल* माने प्रलय काल की
🔆 पवन* माने हवा से
🔆 उद्धत माने प्रचंड। समुद्र कैसा हो? समुद्र में लहरें तो वैसे ही आती हैं और अगर समुद्र में हवा कौन सी आ जाए? जैसी हवा चलती है प्रलय काल की, प्रलय काल की हवा कितनी तेज होती है? कि जब प्रलय काल की हवा चलती है सारे मकान ही नहीं बड़े-बड़े पहाड़ भी धराशाई हो जाते है ऐसी प्रचंड वायु होती है। तो कह रहे हैं प्रलय काल की हवा से उद्धत माने प्रचंड और
🔆 नक्र-चक्रं* माने मगरमच्छ के समूह वाले ऐसे अम्बुनिधिं माने समुद्र को
🔆 भुजाभ्याम् अपनी भुजाओं से
🔆 तरीतुम तैरने के लिए
🔆 को वा अलम* कौन समर्थ हो सकता है? कोई नहीं।
🔆क्या उदाहरण दिया मानतुङ्ग स्वामी ने, हे भगवन्! एक तो समुद्र हो और समुद्र मे कैसी हवा लग रही हो? प्रलय काल की प्रचंड हवा, उस हवा के कारण उस समुद्र में तूफान मच रहा हो और कैसा समुद्र हो? नक्र-चक्रं जिसमें मगरमच्छ भरे हुए हैं। ऐसे अम्बुनिधिं माने समुद्र को क्या भुजाओं से कोई तैर सकता है क्या? नहीं तैर सकता। ऐसे समुद्र को पार करने की सामर्थ किसी मे नहीं इसी तरह हे भगवन्! आप गुण-समुद्र! हैं, आपके गुणों के कहने के लिए बुद्धि से चाहे बृहस्पति के समान भी कोई क्यों ना हो, फिर भी क: क्षम: वह कैसे समर्थ हो सकता है, अर्थात नहीं हो सकता। भगवान का गुणानुवाद है। क्या कह रहे हैं? भगवान आप अनंत गुणों के स्वामी हैं और अनंत गुणों को कहना किसी के सामर्थ में नहीं आ सकता चाहे बुद्धि से कोई भी कैसा भी हो।
🔆एक बार फिर देखें। गुण- समुद्र! हे गुणों के सागर भगवन् !, ते माने आपके शशाङ्क-कान्तान् चंद्रमा जैसी कांति वाले गुणान् गुणों को वक्तुं कहने के लिए बुद्धि से बृहस्पति के सामान भी कोई हो तो भी क: क्षम: कैसे समर्थ हो सकता है? नहीं हो सकता। उदाहरण दे रहे हैं आचार्य कि प्रलय काल की प्रचंड वायु से जो समुद्र बड़ा प्रचंडता को प्राप्त है जिसमे बड़ी-बड़ी लहरें उठ रही है
🔆 नक्र-चक्रं मगरमच्छों से भरपूर ऐसे अम्बुनिधिं ऐसे समुद्र को भुजाभ्याम् अपनी भुजाओं से, मतलब समुद्र में कूद पड़े और कोई यह कहे ना मैं समुद्र को पार करने की सामर्थ रख सकता हूं। कोई ऐसा है? नहीं कोई नहीं। एक तो समुद्र और फिर प्रचंड और फिर मगरमच्छ भरे हो, उसे भुजाओं से कोई नहीं पार कर सकता।
🔆जैसे प्रलय काल की हवा से प्रचंड और मगरमच्छों से भरे हुए अम्बुनिधिं (अम्बु माने पानी, निधि माने खजाना) समुद्र को भुजाओं के द्वारा तरीतुम तैरने के लिए को वा अलम कौन समर्थ है? अर्थात कोई नहीं। जैसे प्रलय काल की हवा से प्रचंड समुद्र को मगरमच्छों से भरे समुद्र को अपनी भुजाओं से कोई पार नहीं कर सकता उसी तरह भगवन् आप गुणों के सागर हैं, आपके गुणों को कहने के लिए चाहे बुद्धि से बृहस्पति जैसा हो तो भी आपके गुणों का वर्णन करना किसी के लिए भी समर्थ नहीं। कोई इतनी शक्ति कोई इतना ज्ञान रखता ही नहीं है भगवन् इसलिए कोई इतनी क्षमता नहीं रखता है।
✳️ शब्दार्थ ✳️
🔆 सुरगुरु = बृहस्पति के
🔆 प्रतिमः अपि = सदृश भी
🔆 कल्पान्त काल = प्रलयकाल की
🔆 नक्रचक्रम् = मगरमच्छों का समूह
🔆 तरीतम् = तैरने के लिए
🔆 क: अलम् : कौन समर्थ है ? अर्थात् कोई भी नहीं
Question & Answer
1️⃣प्रलय काल से क्या तात्पर्य है?
🔆 6 काल उत्सर्पिणी के उसके बाद 6 काल अवसर्पिणी, वर्तमान में अवसर्पिणी का पंचम काल है। इस पंचम काल के बाद अब छठा कॉल आएगा। छठे काल में जब थोड़ा समय शेष रह जाएगा तब प्रलय काल प्रारंभ हो जाएगा। उस प्रलय काल में भयंकर हवा चलेगी, भयंकर अग्नि की वर्षा होगी, भयंकर पानी की वर्षा होगी और उससे सब कुछ नष्ट हो जाएगा। प्रलय काल का मतलब छठे काल के अंत में जितना भी यह सब जितनी रचना है सब नष्ट करने के लिए जो हवा पानी आदि की वर्षा होती है, उसे हम कहते हैं प्रलय। हम कहते हैं ना प्रलय मच जाएगी अर्थात सब कुछ नष्ट हो जाएगा। यह प्रलय काल छठे काल के अंत में होता है।
2️⃣भगवान को गुण-समुद्र की उपमा क्यों दी गई?
🔆जिस तरह समुद्र में पानी होता है उसका कोई पार नहीं होता। कितना पानी होता है अथाह जल होता है। उसी तरह भगवान में कितने गुण हैं? समुद्र के समान जिसका पार पाना समर्थ नहीं। देवों में सबसे ज्यादा बुद्धिमान माना जाता है, बृहस्पति। बुद्धि में कोई बृहस्पति जैसा भी हो तो भी हे भगवन्! आपके पवित्र गुणों का पार नहीं पा सकता। इसलिए आपके गुण कैसे हैं आप गुणों के सागर हैं, आपके गुण अनंत हैं और वास्तव में तीर्थंकर भगवान या केवली भगवान में अनंत गुण होते हैं।