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बीस तीर्थंकर और उनकी बीस विशेषतायें

विहरमान बीस तीर्थंकर और उनकी बीस विशेषतायें:

1) भरत ऐरावत क्षेत्र की तरह महाविदेह क्षेत्र में एक के बाद एक ऐसे चौबीस तीर्थंकरों की व्यवस्था नहीं है। महाविदेह क्षेत्र की पुण्यवानी अनंतानंत और अद्भुत है. वहां सदाकाल बीस तीर्थंकर विचरते रहते हैं, उनके नाम भी हमेशा एक सरीखे ही रहते हैं; इसलिए उन्हें जिनका कभी भी वियोग न हो, ऐसे विहरमान बीस तीर्थंकर भी कहते हैं।
2) महाविदेह क्षेत्र में बीस से कभी भी कम तीर्थंकर नहीं होते हैं। अतः उन्हें जयवंता जगदीश भी कहते हैं क्योकि वे सभी साक्षात् परमात्म स्वरुप में विद्यमान रहते हैं।
3) इस तरह महाविदेह क्षेत्र में तीर्थंकरों का कभी भी अभाव नहीं होता है।
4) महाविदेह क्षेत्र का समय सदाकाल एक सा ही रहता है और वहां सदैव चतुर्थ काल के प्रारम्भ काल के समान समय रहता है।
5) महाविदेह क्षेत्र के पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण इस तरह चार विभाग करने से पाँचों महाविदेहों में 5×4=20 विभाग हुए। एक विभाग में एक; ऐसे बीस तीर्थंकर सदा विचरते हैं.
6) ये बीस विहरमान तीर्थंकर सदाकाल से धर्म-दीप को प्रदीप्त कर रहे हैं और करते रहेंगे।
7) महाविदेह क्षेत्र के इन बीसों का जन्म एक साथ सत्रहवें तीर्थंकर श्री कुंथुनाथ जी के निर्वाण के बाद महाविदेह क्षेत्र में हुआ था।
बीसवें तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रत स्वामी के निर्वाण के पश्चात महाविदेह क्षेत्र के इन सभी तीर्थंकरों ने एक साथ दीक्षा ली।
9) बीसों विहरमान एक हज़ार वर्ष तक छद्मस्थ अवस्था में रहते हैं और इन्हें एक ही समय में केवलज्ञान, केवल दर्शन की प्राप्ति होती है।
10) भविष्यकाल की चौबीसी के सातवें तीर्थंकर श्री उदयप्रभस्वामी के निर्वाण के पश्चात बीसों विहरमान एक ही समय में मोक्ष पधारेंगे।
11) इसी समय महाविदेह क्षेत्र में दूसरे बीस विहरमान तीर्थंकर पद को प्राप्त होंगे।
12) यह अटल नियम है कि बीस विहरमान तीर्थंकर एक साथ जन्म लेते हैं, एक साथ दीक्षित होते हैं, एक साथ केवलज्ञान को प्राप्त होते हैं.
13) यह भी नियम है कि जब वर्तमान के बीस विहरमान तीर्थंकर दीक्षित होते हैं तब भावी बीस विहरमान तीर्थंकर जन्म लेते हैं।

14) जब वर्तमान के बीस विहरमान तीर्थंकर केवल्य प्राप्त होते हैं तब भावी बीस विहरमान तीर्थंकर दीक्षित होते हैं।
15) वर्तमान के जब बीस विहरमान तीर्थंकर निर्वाण प्राप्त करते हैं तब भावी बीस विहरमान तीर्थंकर केवलज्ञान को प्राप्त कर तीर्थंकर पद पर आसीन हो जाते हैं और उसी समय अन्य स्थानों में बीस विहरमान तीर्थंकरों का जन्म होता है।
16) प्रत्येक विहरमान तीर्थंकर के 84-84 गणधर होते हैं।
17) प्रत्येक विहरमान तीर्थंकर के साथ दस-दस लाख केवलज्ञानी परमात्मा रहते हैं
18) प्रत्येक विहरमान तीर्थंकर के साथ एक-एक अरब मुनिराज और इतनी ही साध्वियाँ होती हैं।
19) बीसों विहरमान तीर्थंकरों के संघ में कुल मिलाकर दो करोड़ केवलज्ञानी, दो हज़ार करोड़ मुनिराज और दो हज़ार करोड़ साध्वियाँ होती हैं।
20) महाविदेह क्षेत्र में सदाकाल रहने वाले विहरमान बीस तीर्थंकरों के एक सरीखे नाम इस तरह हैं –
1. श्री सीमंधर स्वामी 2. श्री युगमंदर स्वामी 3. श्री बाहु स्वामी 4. श्री सुबाहु स्वामी 5. श्री संजातक स्वामी
6. श्री स्वयंप्रभ स्वामी 7. श्री ऋषभानन स्वामी 8. श्री अनन्तवीर्य स्वामी 9. श्री सूरप्रभ स्वामी
10. श्री विशालकीर्ति स्वामी 11. श्री व्रजधर स्वामी 12. श्री चन्द्रानन स्वामी 13. श्री भद्रबाहु स्वामी
14. श्री भुजंगम स्वामी 15. श्री ईश्वर स्वामी 16. श्री नेमिप्रभ स्वामी 17. श्री वीरसेन स्वामी
18. श्री महाभद्र स्वामी 19. श्री देवयश स्वामी 20. श्री अजितवीर्य स्वामी
सीमंधर स्वामी का अधिक परिचय…
भगवान सीमंधर स्वामी कौन है?
भगवान सीमंधर स्वामी वर्तमान तीर्थंकर भगवान हैं, जो हमारी जैसी ही दूसरी पृथ्वी पर विराजमान हैं। उनकी पूजा का महत्व यह है कि उनकी पूजा करने से, उनके सामने झुकने से वे हमें शाश्वत सुख का मार्ग दिखाएँगे और शाश्वत सुख प्राप्त करने का और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग दिखाएँगे।
भगवान सीमंधर स्वामी कहाँ पर है?
महाविदेह क्षेत्र में कुल ३२ देश है, जिसमें से भगवान श्री सीमंधर स्वामी पुष्प कलावती देश की राजधानी
पुंडरिकगिरी में हैं। महाविदेह क्षेत्र हमारी पृथ्वी के उत्तर पूर्व दिशा से लाखों मील की दूरी पर है।

सीमंधर स्वामी का अधिक परिचय…
भगवान सीमंधर स्वामी का जन्म हमारी पृथ्वी के सत्रहवें तीर्थंकर श्री कुंथुनाथ स्वामी और अठारहवें तीर्थंकर श्री अरहनाथ स्वामी के जीवन काल के बीच में हुआ था।
भगवान श्री सीमंधर स्वामी के पिताजी श्री श्रेयंस पुंडरिकगिरी के राजा थे। उनकी माता का नाम सात्यकी था। अत्यंत शुभ घड़ी में माता सात्यकी ने एक सुंदर और भव्य रूपवाले पुत्र को जन्म दिया। जन्म से ही बालक में मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधि ज्ञान थे।
उनका शरीर लगभग १५०० फुट ऊँचा है। राज कुमारी रुकमणी को उनकी पत्नी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। जब भगवान राम के पिता राजा दशरथ का राज्य हमारी पृथ्वी पर था, उस समय महाविदेह क्षेत्र में भगवान सीमंधर स्वामी ने दीक्षा अंगीकार करके संसार का त्याग किया था। यह वही समय था, जब हमारी पृथ्वी पर बीसवें तीर्थंकर श्री मुनीसुव्रत स्वामी और इक्कीसवें तीर्थंकर श्री नेमीनाथ की उपस्थिति के बीच का समय था। दीक्षा के समय उन्हें चौथा ज्ञान उद्भव हुआ, जिसे मनःपयार्य ज्ञान कहते हैं। एक हज़ार वर्ष तक के साधु जीवन, जिसके दौरान उनके सभी ज्ञानावरणीय कर्मों का नाश हुआ, उसके बाद भगवान को केवळज्ञान हुआ।
भगवान के जगत कल्याण के इस कार्य में सहायता के लिए उनके साथ ८४ गणधर, १० लाख केवळी (केवलज्ञान सहित), १० करोड़ साधु, १० करोड़ साध्वियाँ, ९०० करोड़ पुरुष और ९०० करोड़ विवाहित स्त्री-पुरुष (श्रावक-श्राविकाएँ) हैं।
उनकेरक्षक देव-देवी श्री चांद्रायण यक्ष देव और श्री पाँचांगुली यक्षिणी देवी हैं।
महाविदेह क्षेत्र में भगवान सीमंधर स्वामी और अन्य उन्नीस तीर्थंकर अपने एक करोड़ अस्सी लाख और ४०० हज़ार साल का जीवन पूर्ण करने के बाद में मोक्ष प्राप्ति करेंगे। उसी क्षण इस पृथ्वी पर अगली चौबीसी के नौवें तीर्थंकर श्री प्रोस्थिल स्वामी भी उपस्थित होंगे। और आँठवें तीर्थंकर श्री उदंग स्वामी का निर्वाण बस हुआ ही होगा।
सीमंधर स्वामी मेरे लिए किस प्रकार हितकारी हो सकते हैं?
तीर्थंकर का अर्थ है, पूर्ण चंद्र! (जिन्हें आत्मा का संपूर्ण ज्ञान हो चुका है – केवलज्ञान) तीर्थंकर भगवान श्री
सीमंधर स्वामी महाविदेह क्षेत्र में हाज़िर हैं। हमारी इस पृथ्वी (भरतक्षेत्र) पर पिछले २४०० साल से तीर्थंकरों का जन्म होना बंद हो चुका है। वर्तमान काल के सभी तीर्थंकरों में से सीमंधर स्वामी भगवान हमारी पृथ्वी के सबसे नज़दीक हैं और उनका भरतक्षेत्र के जीवों के साथ ऋणानुबंध है।
सीमंधर स्वामी भगवान की उम्र अभी १,५०,००० साल है। और वे अभी अगले १,२५००० सालों तक जीवित रहेंगे, अतः उनके प्रति भक्ति और समर्पण से हमारा अगला जन्म महाविदेह क्षेत्र में हो सकता है और भगवान सीमंधर स्वामी के दर्शन प्राप्त करके हम आत्यंतिक मोक्ष की प्राप्ति कर सकते हैं।

सीमंधर स्वामी मुझे कैसे मदद रूप हो सकते हैं?
तीर्थंकर” का मतलब “पूर्णिमा का चंद्र” (शाश्वत व पूर्ण आत्मा का ज्ञान – केवळज्ञान)। तीर्थंकर श्री सीमंधर
स्वामी हाल में महाविदेह क्षेत्र में मौजूद है। हमारी पृथ्वी पर, यानी भरत क्षेत्र में, पिछले करीब २५०० वर्षों से तीर्थंकर का जन्म नहीं हुआ। हाल में मौजूद सभी तीर्थंकरों में से सीमंधर स्वामी हमारे सबसे नज़दीक है और उनका भरत क्षेत्र से ऋणानुबंध है और हमारे मोक्ष की उन्होंने ज़िम्मेदारी ली है।
सीमंधर स्वामी की आयु अभी डेढ़ लाख वर्ष की है और वे सवा लाख साल और जीनेवाले है। उनकी आराधना करके हम अगले भव में महाविदेह क्षेत्र में जन्म पाकर, उनके दर्शन करके आत्यंतिक मोक्ष पा सकते है……