भक्तामर- प्रणत- मौलि- मणि- प्रभाणा-
मुद्द्योतकं दलित- पाप- तमो- वितानम्
सम्यक्प्रणम्य जिन- पाद- युगं युगादा-
वालम्बनं भवजले पततां जनानाम्
भक्त भक्ति करने वाला भक्त कहलाता है, अमर माने देवता, भक्ति कर रहे देव। उनके
🔆 प्रणत माने झुके हुए,
🔆 मौलि माने मुकटों की
🔆 मणियों की प्रभाणा कांति को
🔆 उद्द्योतकं अर्थात प्रकाशित करने वाले अर्थात विकसित करने वाले। फिर एक बार देखें संस्कृत है थोड़ी कड़ी तो होती है पर अगर आप समझने का मन बनाएंगे तो समझ में आएगा। भक्ति कर रहे देवों के झुके हुए मुकटों की मणियों की प्रभा को उद्द्योतकं प्रकाशित करने वाले।
🔆दूसरा
🔆 दलित माने नष्ट करने वाले
🔆 पाप रूपी
🔆 तमो माने अंधकार के विस्तार को अर्थात पाप-रूपी अंधकार के विस्तार को नष्ट करने वाले!
🔆 सम्यक्प्रणम्य अच्छी प्रकार प्रणाम करके किन को?
🔆 जिन- पाद- युगं जिनेंद्र भगवान के पाद माने चरण
🔆 युगं माने दोनों। जिनेंद्र भगवान के दोनों चरणों को अच्छी प्रकार प्रणाम करके, कैसे हैं वे चरण?
🔆 युगादौ युग की आदि में भवजले संसार रूपी जल में पततां गिरते हुए जनानाम् प्राणियों को आलम्बनं सहारा देने वाले।
Q मानतुङ्ग स्वामी ने इस काव्य में क्या लिखा?
🔆 भगवान का स्तवन हो रहा है। पहले दोनों काव्य एक साथ पढ़े जाते हैं, दोनों का एक से एक संबंध है। तो यहां क्या कह रहे हैं? आपके दोनों चरण कमल कैसे हैं? हे भगवान जिनेंद्र भगवान के दोनों चरण कैसे हैं? भक्ति कर रहे देवों के झुके हुए मुकटों की मणियों की प्रभा को प्रकाशित/विकसित करने वाले हैं और कैसे हैं? पाप रूपी अंधकार के विस्तार को नष्ट करने वाले हैं। और कैसे हैं? युग की आदि में *संसार रूपी जल में* संसार रूपी समुद्र में *गिरते हुए प्राणियों को सहारा देने वाले ऐसे जिनेंद्र भगवान के दोनों चरणों को सम्यक् माने अच्छी प्रकार प्रणाम करके.. अब इसके बाद जो दूसरा काव्य है, वह इसमें जुड़ेगा। अच्छी प्रकार प्रणाम करके आचार्य मानतुङ्ग महाराज क्या कहना चाह रहे हैं? मैं समझता हूं आपके समझ में प्रत्येक शब्द आया होगा।
✳️शब्दार्थ
🔆 भक्तामर = भक्त देवों के
🔆 प्रणतमौलि= झुके हुए मुकुट
🔆 मणिप्रभाणाम् = रत्नो की कान्ति के
🔆 उद्योतकं = प्रकाशक
🔆 वितानम्= विस्तार को
🔆 दलित = नष्ट करने वाले
🔆 पतताम् = गिरते हुए
🔆 आलम्बनम् = सहारा
🔆 एक बार फिर देख ले, भक्ति कर रहे देवों के झुके हुए मुक्तों की मणियों की प्रभा को प्रकाशित करने वाले (प्रकाशक) और पाप रूपी अंधकार के विस्तार को नष्ट करने वाले। युग की आदि में संसार रूपी जल में याने समुद्र में गिरते हुए प्राणियों को सहारा देने वाले कौन? भगवान जिनेंद्र के दोनों चरणों को अच्छी प्रकार प्रणाम करके..
🙏🧘🏻♂️ आचार्य मानतुङ्ग महाराज भक्तामर स्तोत्र के प्रारंभ में यह मंगलाचरण कर रहे हैं।🧘🏻♂️🙏🏻
❇️ Question & Answer❇️
1️⃣ भक्तामर स्तोत्र की क्या महिमा है?
🔆भक्तामर स्तोत्र की अचिंत्य महिमा है। आपने मानतुङ्ग स्वामी की कथा पढ़ी होगी। मानतुङ्ग स्वामी को जब राजा ने अपने दरबार में बुलाया और वे दरबार में उपस्थित नहीं हुए तब उनको बुलाकर जबरन उन्हें जेल में बंद कर दिया। सुनते हैं 48 तालें लगाए गए थे। आचार्य मानतुङ्ग महाराज ने 48 काव्य बनाए एक-एक ताला टूटता गया और मानतुङ्ग स्वामी बाहर आ गए। इस स्तोत्र की महान महिमा है। इस स्तोत्र का हर काव्य का, काव्य नहीं मंत्र है। इसके द्वारा बड़े रोगों की शांति होती है और महान पुण्य का अर्जन होता है।
2️⃣ इस स्तोत्र की रचना कब हुई थी?
🔆इस स्तोत्र की रचना के बारे में दो प्रमाण मिलते हैं। कुछ विद्वानों का और आचार्यों का कहना है कि छठी शताब्दी में भक्तामर स्तोत्र रचा गया और कुछ कहते हैं कि 10 वीं शताब्दी में इसकी रचना हुई, इस प्रकार दो मत है।
3️⃣ इस भक्तमर स्तोत्र को श्वेतांबर आदि में भी माना जाता है?
🔆 हां, इस स्तोत्र की यह विशेषता है कि दिगंबर और श्वेतांबर दोनों समाज इस भक्तामर स्तोत्र को मान्य करती हैं। अंतर इतना है श्वेतांबर लोग 44 काव्य मानते हैं और हम 48 काव्य मानते हैं।
4️⃣ इस स्तोत्र की रचना कहां पर हुई थी?
🔆 सुनते हैं इस स्तोत्र की रचना धारा नगरी के कारावास में आचार्य मानतुङ्ग स्वामी ने की थी।
5️⃣ इस भक्तामर स्त्रोत्र को कब पढ़ना चाहिए और किस प्रकार से पढ़ना चाहिए?
🔆 कुछ लोग इस भक्तामर स्तोत्र के बारे में ऐसा कहते हैं कि भक्तामर स्तोत्र का वाचन दिन में होना चाहिए, रात्रि में नहीं होना चाहिए। अष्टमी चतुर्दशी को नहीं होना चाहिए। पर नहीं ऐसी कोई बात नहीं। भक्तामर स्तोत्र का वाचन आप कभी भी कर सकते हैं। आपने बोला, कैसे होना चाहिए? अगर भक्तामर स्तोत्र का आपको पूरा पुण्य लेना हो, अगर पूरी विशुद्धि का फायदा उठाना हो तो आनंद जब है जब भक्तामर स्तोत्र का पाठ आप कुंडलपुर के बड़े बाबा की मूर्ति भगवान आदिनाथ के सामने उनसे आंख से आंख मिलाकर करें। आनंद जब है जब चांदखेड़ी के भगवान आदिनाथ के सामने आप बैठकर भगवान के सामने एकांत में आप इस स्तोत्र का पाठ करें तब देखें इसका आनंद कैसे आता है।
6️⃣ इसको पढ़ना कैसे चाहिye ?
🔆उच्चारण शुद्ध होना चाहिए। हर शब्द का अर्थ आना चाहिए और उच्चारण मुख से होना चाहिए और हृदय में उसके अर्थ का चिंतन होना चाहिए। फिर देखिए इसकी भक्ति और इसका फल, पुण्य का बंद कराने वाला यह स्तोत्र है। आप समझिए कोई दुकान बहुत समय से चलती है तो क्यों चलती है क्योंकि उस दुकान का माल बहुत अच्छा होता है। इतने स्तोत्रों मे भक्तामर स्तोत्र ही मान्य क्यों हुआ? इसलिए हुआ क्योंकि यह स्तोत्र अनुपम और अनोखा है।
7️⃣ भक्तामर स्त्रोत्र मे कितनी टिकाएँ और कितने अनुवाद उपलब्ध होते हैं?
🔆 भक्तामर स्त्रोत्र पर संस्कृति टीका तो केवल एक ही दिखाई पड़ती है, आचार्य प्रभा चंद्र महाराज की। लेकिन हिंदी अनुवाद कितने हुए बस पूछिए नहीं। 121 विद्वानों ने इसके हिंदी अनुवाद किए हैं। इतने हिंदी अनुवाद आज तक किसी भी स्तोत्र वगैरह के नहीं हुए, यह अनुपम स्तोत्र है।
8️⃣ क्या हम भक्तामर स्तोत्र को संस्कृत की बजाय हिंदी अनुवाद में पड़े तो क्या उतना ही फल मिलेगा?
🔆 नहीं, ऐसा कैसे होगा हिंदी अनुवाद हिंदी अनुवाद है, आचार्य मानतुंग महाराज ने जो संस्कृत का स्तोत्र लिखा है, इसका हर काव्य मंत्र है। आप सोचो णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं, इसकी महिमा गजब है। अगर आप इसकी बजाइए ये बोल देना अरिहंतों को नमस्कार हो, सिद्धों को नमस्कार हो तो क्या बराबर फल मिलेगा नहीं, ऐसा नहीं होगा। उच्चारण तो संस्कृत वाले स्तोत्र का ही होना चाहिए। अगर कोई यह कहे हमें संस्कृत बोलना नहीं आता तो सीख लो ना क्या बात है। आप संस्कृत में बोले, संस्कृत सीख ले और संस्कृत में बोलकर संस्कृत का आनंद लें। हिंदी अनुवाद, बोल लें, कोई बात नहीं मैं मना नहीं कर रहा लेकिन फिर भी हिंदी अनुवाद से संस्कृत का स्तोत्र बहुत अच्छा बहुत अधिक फल देने वाला है। अतः कोशिश तो यही करें कि संस्कृत का भक्तामर स्तोत्र का वाचन ही करें।