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Bhaktamar Stotra – 3

बुद्ध्या विनाऽपि विबुधार्चित- पादपीठ!
स्तोतुं समुद्यत- मतिर् विगत- त्रपोऽहम्
बालं विहाय जल- संस्थितमिन्दु- बिम्ब- मन्यः क इच्छति जनः सहसा ग्रहीतुम् 🧑

🔆 बुद्ध्या बुद्धि के

🔆 विनाऽपि बिना भी, बुद्धि के बिना भी

🔆 विबुधार्चित पादपीठ भगवान के लिए संबोधन दे रहे हैं विबुधार्चित माने देवों के द्वारा पूजित है पादपीठ माने चरण रखने का आसन अर्थात जिनका चरण रखने का आसन देवों के द्वारा पूजित हैं ऐसे हे भगवन्! यह भगवान का संबोधन है। फिर देखें जिनका

🔆 पाद माने चरण, चरण रखने का जिनका आसन सिंहासन

🔆 विबुध माने देवों के द्वारा पूजित हैं ऐसे हे तीर्थंकर भगवन्! बुद्धि के बिना भी

🔆 स्तोतुं स्तवन करने को

🔆 समुद्यत मति: तत्पर बुद्धि वाला हुआ हूं। मैं स्तवन करूंगा मैंने संकल्प कर लिया है। मैंने मन बना लिया है। और विगत छोड़कर

🔆 त्रप माने लज्जा को ,अहम् अर्थात मैं, मैं लज्जा को छोड़कर स्तवन करने के लिए तत्पर बुद्धि वाला हुआ हूं, लेकिन हूं कैसा? बुद्धि के बिना भी। बुद्धि के बिना भी आचार्य मानतुङ्ग क्यों कह रहे हैं? मानतुङ्ग स्वामी बड़े आचार्य थे फिर उन्होंने ऐसा क्यों कहा कि बुद्धि के बिना भी? पहले और दूसरे काव्यों में आपने देखा था कि हे भगवन्! आपका स्तवन किसने किया था द्वादशांग के जानने से जिनको बुद्धि की चतुराई प्राप्त हुई थी ऐसे इंद्रों ने, तो इन्द्र द्वादशांग के जानने वाले उनके सामने मानतुङ्ग स्वामी का ज्ञान बहुत थोड़ा क्योंकि पंचम काल में तो अंग पूर्व का ज्ञान उस समय किसी को था ही नहीं। वह तो पहले भगवान महावीर के बाद के 200-300 बरस तक रहा, 400 बरस तक रहा उसके बाद किसी के नहीं रहा तो मानतुङ्ग स्वामी अपनी लघुता बता रहे हैं। उन्हें रंच मात्र भी अभिमान नहीं है। वह क्या कह रहे हैं जिनके चरण रखने का सिंहासन देवों द्वारा पूजित है ऐसे हे भगवन्! मैं

🔆 विगत- त्रप: लाज छोड़कर, कोई क्या कहेगा? बुद्धि नहीं थी तो स्तवन क्यों करने लगे। कहेगा तो कह लेगा मुझे कोई चिंता नहीं। मुझे किसी बात की शर्म नहीं है। क्यों? मैं भगवान का स्तवन करूंगा।

🔆 विगत- त्रप लाज छोड़कर

🔆स्तोतुं स्तवन करने के लिए

🔆 समुद्यत मति तत्पर बुद्धि वाला हुआ हूं। हूं कैसा? बुद्धि के बिना भी। मेरा यह काम बच्चों जैसा माना जाएगा कि नहीं? माना जाएगा।

🔆आचार्य मानतुङ्ग स्वामी खुद कह रहे हैं जैसे…

🔆बालं बालक को

🔆 विहाय माने छोड़ कर

🔆 जल- संस्थितम् जल में मौजूद, जल में दिखाई पड़ने वाले

🔆 इन्दु-बिम्बम् चंद्रमा के बिम्ब को।

🔆 अन्यः क अन्य कौन

🔆 जनः माने पुरुष

🔆 सहसा माने बिना विचारे

🔆 ग्रहीतुम् पकड़ने की

🔆 इच्छति  इच्छा करता है।

🔆 मान लो, पूर्णमासी का चंद्रमा🌝 आकाश में चमक रहा है। आप छत पर बैठे हैं। आपके साथ एक बच्चा भी है। आपने क्या किया एक थाली में पानी भर लिया और पानी भर के ऊपर छत पर रखा। चंद्रमा का बिम्ब उस पानी में पड़ रहा है। आप भी बैठे हैं और बच्चा भी बैठा है। वह बच्चा क्या कहेगा? चंदा मामा, और उस चंद्रमा को पकड़ने की कोशिश करेगा कि नहीं? जरूर करेगा। आप करेंगे? नहीं, हम क्यों करेंगे हम तो जानते हैं चंद्रमा🌝 का प्रतिबिंब है चंद्रमा थोड़ी है। बच्चा तो करेगा? हाँ बच्चा तो करेगा यह उसका बचकाना काम माना जाएगा। उसी तरह हे भगवन्! जैसे जल में संस्थित माने दिखाई पड़ने वाले चंद्रमा 🌝के बिंब को बालक को छोड़कर कौन पुरुष ऐसा है जो बिना विचारे पकड़ने की इच्छा करता है ?अर्थात कोई पुरुष ऐसा नहीं होगा जो चंद्रमा 🌝की झलक पानी में पड़ रही हो और उसको पकड़ने की कोशिश करें। उसको पकड़ने की कोशिश कौन करेगा? मात्र बालक ही कर सकता है। क्यों? क्योंकि यह बचकाना काम है, समझदार पुरुष ऐसा काम नहीं करता। उसी तरह भगवन् आपका स्तवन तो द्वादशांग के जानने वाले इन्द्रों के द्वारा किया गया था। उनके सामने मेरी बुद्धि ना के बराबर है। इसलिए बुद्धि के बिना भी मैं लज्जा छोड़कर आपके स्तवन करने के लिए उद्यत बुद्धि वाला हुआ हूं।

🔆एक बार इसका अर्थ फिर देख लें

विबुधार्चित पादपीठ! भगवान के लिए संबोधन, देवों के द्वारा पूजित है चरण रखने का सिंहासन जिनका ऐसे हे तीर्थंकर भगवन् ! बुद्धि के बिना भी मैं लज्जा छोड़कर स्तवन करने  के लिए उद्यत बुद्धि वाला हुआ हूं। जैसे बालक को छोड़कर जल में दिखाई पड़ने वाले चंद्रमा के बिंदु को अन्य  कौन पुरुष ऐसा होगा जो बिना विचारे पकड़ने की इच्छा करता है अर्थात कोई नहीं। इसलिए भगवान बुद्धि के बिना भी मैं आपके स्तवन करने के लिए आगे उद्यत बुद्धि वाला हुआ हूं।

 ✳️Question & Answer✳️

1️⃣   पादपीठ से क्या मतलब होता है?

🔆  पादपीठ का मतलब होता है सिंहासन, जिस पर चरण रखे जाते है।

2️⃣लज्जा त्याग कर क्यों कहा?

🔆 इसलिए कहा कि कोई क्या कहेगा मुझे इसके लिए कोई भी लज्जा या शर्म नहीं है। मैं तो स्तवन करूंगा। कोई यह कहेगा की आप उन इन्द्रों के मुकाबले थोड़ी बुद्धि वाले थे तो फिर आपने स्तवन क्यों किया? नहीं, मुझे किसी की बात की कोई शर्म नहीं। मुझे तो भगवान का स्तवन करना है। मैं चाहे कितनी ही कम बुद्धि वाला क्यों ना हूं, मैं तो स्तवन करूंगा।