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मौन एकादशी

मौन एकादशी से जुडी विशेष जानकारी:-

श्री नेमिनाथ भगवान और कृष्णवासुदेव

एक समय श्री नेमिनाथ भगवान द्वारिका नगरी पधारे।जब कृष्णवासुदेव ने प्रभु के आगमन के समाचार सुने तो वे उनके दर्शनार्थ हेतु उनके समवसरण में गए।उनकी धर्म देशना सुनने के बाद कृष्ण ने उन्हें वंदन नमन किया व उनसे प्रश्न किया, ” हे प्रभु ! राजा होने के नाते राज्य की बहुत सारे कर्तव्यों के चलते मैं किस प्रकार अपनी धार्मिक क्रियायों को आगे तक करता रहूँ ? कृपया मुझे पुरे वर्ष में कोई एक ऐसा दिन बताएं जब कोई कम प्रत्याख्यान व्रतादि के बाद भी अधिकतम फल को प्राप्त कर सके ?”
यह सुनकर श्री नेमिनाथ बोले, ” हे कृष्ण, यदि तुम्हारी इस प्रकार की इच्छा है तो तुम मगसर माह के ग्यारहवें दिन ( एकादशी अर्थात मगसर सुदी ग्यारस ) को इस दिन से जुडी सभी धार्मिक क्रियाओं को पूर्ण करो।” प्रभु ने इस दिन की विशेषतायें भी समझाईं।

मौन एकादशी की विशेषतायें एकादशी के इस दिन:

1) श्री अरनाथ भगवान ( 18वें तीर्थंकर ) ने सांसारिक जीवन त्यागकर दीक्षा अंगीकार कर साधूत्व अपनाया।
2) श्री मल्लिनाथ भगवान ( 19वें तीर्थंकर ) का जन्म हुआ , संसार त्यागकर दीक्षा अंगीकार की व केवल ज्ञान प्राप्त किया।
3) श्री नेमिनाथ भगवान ( 22 वें तीर्थंकर ) ने केवल ज्ञान प्राप्त किया।
इस प्रकार तीन तीर्थंकरों के 5 कल्याणक इस दिन मनाये जाते हैं।
भरतक्षेत्र व ऐरावत क्षेत्र में भी चौबीसीयां होती हैं, वहां भी 5 कल्याणक होते हैं।इस तरह 5 भरतक्षेत्र में* (5 × 5 = 25 ) कल्याणक व 5 ऐरावत क्षेत्र में ( 5 × 5 = 25 )* कल्याणक होते हैं।* अर्थात भूतकाल, वर्तमान काल व भविष्य काल की चौबीसियों से सभी क्षेत्रों में 50 कल्याणक से कुल 150 कल्याणक मिलते हैं।
यह सुनकर कृष्ण ने जिज्ञासावश पूछा, ” भगवन, कृपया मुझे बताइये के भूतकाल में किसने इस दिन की पूजा की व इसके फलों को प्राप्त किया ? ”
तब प्रभु नेमिनाथ ने सुव्रत सेठ का उदाहरण दिया जिसने इस दिन पूरी परायणता से, भक्ति से धार्मिक क्रियाओं का अनुसरण करके प्रतिज्ञा पूर्ण की और मोक्ष प्राप्त किया।